डॉ पद्मा शर्मा
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः
सर्वव्यापी सर्वभूतान्रात्मा
कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः
साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च (श्वेताश्वतरोपनिषद्,6.11)
सामाजिक समरसता से तात्पर्य समानता, सम्मान एवं सौहार्द्र का भाव है। संगीत के क्षेत्र में प्रयुक्त किये जाने वाले शब्द (भ्ंतउवदल) समरसता का तात्पर्य मूलतः विशिष्ट ध्वनियों के बीच समुचित संयोजन से है। जिससे संगीत की मधुर ध्वनि प्राप्त होती है। उसी तरह सामाजिक समरसता का तात्पर्य यह कहा जा सकता है कि समाज के विभिन्न धर्मों, जातियों, विश्वासों, विचारों आदि लोगों की विशिष्टता के बीच उनके बीच समुचित संयोजन किया जाना। सामाजिक समरसता की कसौटी यह कही जा सकती है कि हर व्यक्ति विशिष्ट है परन्तु एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। यह सामाजिकपन ही समरसता को मजबूत करने की नींव है।(सामाजिक समरसताः गांधीय परिप्रेक्ष्य- डॉ0 शंभू जोशी) समरसता का अर्थ समाज को एकजुट करना एवं पारस्परिक भेदभाव को समाप्त करना है, यह कार्य किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं है, इसके लिये सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। यह एक सामाजिक आंदोलन है समाज को जागरूक करके ही वास्तविक समरसता का भाव पैदा किया जा सकता है। साहित्यकारों ने अपने साहित्य में समरसता को अभिव्यक्त कर इस कार्य में सहयोग किया है।
राजनारायण बोहरे समकालीन हिन्दी कहानी के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। कस्बाई जीवन, पारिवारिक पृष्ठभूमि के संस्कार, अपने सुदीर्घ अध्ययन, विद्वानों के साहचर्य और लेखकों के संगत के कारण वे सामाजिक समरसता के लिए अपनी सोच , साफगोई और सकारात्मक दृष्टि के लिए मशहूर कथाकार हैं। उनके साहित्य में गाँवों कस्बों का अनगढ़ व अनावृत जीवन है समाज की विसंगतियाँ, पीड़ायें एवं विडम्बनायें भी है। उनकी कहानियों में आम आदमी के जीवन का स्पंदन और गहरी हलचल है। इन कहानियों के माध्यम से आम आदमी के आत्मसंघर्ष को पूरी ईमानदारी से व्यक्त किया गया है। उनमें अंतर्व्याप्त करूणा और संवेदना आम आदमी की चिंताओं को गहरे सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ती है। उनके साहित्य में सामाजिक समरसता को लेकर गहरी चिन्ताएँ हैं और इस समरसता को हमेशा-हमेशा बची रहने के लिए वे निश्चिन्त भी हैं।
दलित विरू़द्ध ऊँची जातियों के बीच हो या हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्म के अनुयायियों के बीच हो, वे किसी तरह के तनाव को न पंसद करते न ही छोटे-मोटे तनावों को हाईलाइट करते हैं, बल्कि समाज के उस दुर्लभ रूप को प्रस्तुत करते हैं जो सामाजिक समरसता की जीवंत मिसाल बन कर प्रकट हाता है । इस संदर्भ में उनकी कुछ कहानियों और आलेखों का जिक्र किया जाना उचित होगा।
श्री बोहरे की एक कहानी है-गोस्टा । इस कहानी का मूल विषय है-गाँव के लोगों के पालतू पशुओं के लिए चरवाहे की अव्यवस्था। इस कहानी में राजनारायण बोहरे ने समाज की एक अत्यंत पुरानी परम्परा को याद किया है बुंदेलखण्ड में जिसका नाम है गोस्टा, गोस्टा शब्द को अर्थ विस्तार से देखा जाये तो गोइठा ,गायों के चरने का स्थान अथवा गोचर भूमि। किसी संगठन के नामकरण के रूप में इस शब्द को बुंदेलखण्ड में गायों को चराने के लिए गांव वालों द्वारा किये गये आपसी समझौते के रूप में उपयोग किया जाता है। कहानी के अर्थ में बनता है -ऐसा समझौता जिसमें पशुपालन से जुड़े गाँव के अगड़े पिछड़े वर्ग के लोग एक जाजम पर बैठ कर निर्णय को सहमति प्रदान करते हैं कि बारी बारी से पूरे गाँव के ढोर चराऐंगे । गोष्ठी में लिया गया यह निर्णय गोस्टा यानि गोष्ठी का वृहद रूप कहलाता है । प्रकाश के गाँव में गोस्टा बनता तो है पर अमल में लाये जाने पर इसमें तमाम दिक्कतें आने लगती हैं और जैसा कि कथानायक प्रकाश को भय था कि कुछ समय तक सब ठीक चलता है समय बीतते न बीतते अगड़े वर्ग के लोग जानवूझ कर अपनी बारी को चुकाने लगते हैं या कोई बहाना बना देते हैं जिसके फलस्वरूप पिछडे वर्ग के लोगों को खासकर प्रकाश को रोज-रोज सबकी बारी को निभाना पड़ता है। अंततः प्रकाश इस गोस्टा यानि समझौते को तोड़ देता है ठीक इसी वक्त गाँव में पिछड़ों के एक अलग गोस्टे की बैठक हो रही होती है। (कहानी-गोस्टा, संग्रह- गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ)
कहानी जमील चच्चा समाज के जाति-पाँति ही नहीं बल्कि मजहबी बंटवारे के खिलाफ कहानीकार राजनारायण बोहरे का एक खुला बयान है। कथानायक जमील चच्चा एक परंपरगत पहलवान हैं; बहुत छोटीसी रोजी रोटी है उनकी, लेकिन वे सब धर्मो को सम्मान करते हैं , हर आयोजन में शिरकत करना अपना फर्ज समझते हैं और अपने अखाड़े तथा मल्ल पहलवानों के साथ वे कस्बे के हर मजहबी कार्यक्रम में हाजिर होते हैं, भादों की डोल ग्यारस के जुलूस और दशहरे के जुलूस में भी और ताजियों के जुलूस में भी, सामाजिक समरसता का ही सोच है कि पुरखों से मिले मालिश – सुताई, नस और हड्डियों के सही जगह बैठाने के अपने गुर को वे अपने बेटे या किसी रिश्तेदार के बेटे को नहीं बल्कि एक हिन्दू के बेटे को सिखाते हैं। (कहानी जमील चच्चा, संग्रह-इज्जत आबरू)
राजनारायण बोहरे की कहानी ‘‘लौट आओ सुखजिंदर’’ एक ऐसे प्रोफेसर सिख युवक की कहानी है जिसका कथा नायक सुखजिंदर यूँ तो अपने सिख धर्म में अमृत चखा हुआ सरदार है लेकिन उसके मन में सामाजिक एकता या सामाजिक समरसता की भावना हिलोरे लेती हैं, वह हर रविवार ईसाई चर्च में जाकर प्रार्थना गाता है तथा मंदिर में बैठ कर सुदंरकाण्ड का पाठ भी करता है, ईद पर सिवंइया खाने मित्रों के घर जाता है तो गुरुद्वारे पर तो रोज ही जाकर बैठता है । यह युवक मोहल्ले में भी सबका प्रिय है तो अपने कॉलेज में भी सब छात्र उसे चाहते हैं। इस कहानी की विशेषता यह है कि सिख विरोधी दंगे के बीच भी वह घबराता नहीं है और उन दंगों को सामाजिक समरसता विगाड़ने वाला नही मानता यह बात अलग है कि वह इन दंगों के बाद गुरुद्वारे में जाकर रहने लगता है और अपने गैर सिख दोस्तों से थोड़ी दूरी बना लेता है।
‘‘ सुखजिंदर में सर्वधर्म समभाव था, गुरु में एकनिष्ठ आस्था थी उसकी। उसने मेरे संपर्क में आकर सनातन धर्म की अनेक बातें सीखी थीं। हर मंगलवार को हमारे साथ पढ़ते-पढ़ते सुंदरकांड याद हो गया था उसे। मेरी अम्मा गांव से कुछ दिन रहने के लिये कस्बें में आई तो उनके चरण भी छुए। अम्मा को उसने कस्बे के सारे मन्दिरों के दर्शन कराये और एक जगह प्रवचन सुनाने भी ले गया। धर्मों, धमशास्त्रों एवं रीति-रिवाज के बारें में गहरी जानकारी थी उसे। वह अपने दोस्तों को प्राचीन जैन मन्दिर ले गया वहां वह झूम-झूम कर “णमो अरिहन्ताणाम’’ गाने लगा। क्रिसमस के दिन सबकों चर्च ले गया और सबके साथ मिलकर प्रभु ईशू के जन्म की खुशी में प्रेयर गाने लगा। (कहानी लौट आओ सुख जिंदर- कहानी संग्रह गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ)
कहानी ‘उम्मीद’ में टीका बब्बा नामक एक ऐसा शख्स है जो कि पूरे समाज के लिए सेवा करने का सदा तैयार रहता है, भलमनसाहत और मानवीयता अभी भी लोगों में है सद्भाव और भाई चारे के रूप तांगा चालक में टीका बब्बा जीती जागती मिसाल थे, ‘‘… जाकिर भाई की पताहू की डिलेवरी बिगड़ जाने पर रात ढाई बजे बिना बुलाये अपना तांगा जोतकर वे ही खुद जा पहुंचे थे और पतोहू को तांगे में डालकर दौड़ते हुये सरकारी अस्पताल ले गये थे। इस रात वे वहां से हिले तक नहीं…..जाकिर भाई के बहनोई शरीफ मियां की मिट्टी को एक्सीडेंट के बाद वे ही तो अपने तांगे में डालकर लाये थे। दीना भईया की बिटिया के ब्याह में टीका बब्बा ने अपन तांगा ही गिरवी रख दिया था। बाद में जाकर किश्त-किश्त चुकाकर वापस उठाया था।’’ (पृ 55-56 कहानी उम्मीद- गोस्टा तथा अन्य कहानियां )
कहानी ‘विस्फोट’ में कथानायक किशन एक गाँव में अध्यापक है जहाँ कि उसके पिता एक सामान्य मजदूर हुआ करते थे। कस्बे से पढ़लिख कर अध्यापक बन कर गाँव में लौटने पर गाँव का बड़ा आदमी पटेल उसे न केवल दबाने और शोषण करने का प्रयास करता है बल्कि उसे दलित समाज से अलग रहने का परामर्श देता है लेकिन किसान सामाजिक समरसता की ऐसी गंगा बहाता है कि गाँव का हर व्यक्ति उसके गुण गाता है तथा पटेल द्वारा की गयी शिकायत की जाँच करने आये अधिकारी के समक्ष किशन के पक्ष में बयान देने बहुतेरे लोग उपस्थित होने लगते हैं। ( कहानी ‘विस्फोट’ दैनिक भास्कर दिवाली विशेषांक 2000 )
श्री बोहरे की अनेक कहानियाँ सामाजिक समरसता की पहचान करते चरित्रों को उजागर करती है जिनमें इज्जत आबरू, मुठभेड़, भय आदि कहानी एवं उपन्यास मुखबिर के नाम लिये जा सकते हैं। रिश्ते सगे न हो तो भी धर्म के रिश्ते भी चलते हैं-‘‘सारी कॉलोनी में वह गर्व से अपनी सास को लिये-लिये फिरी। दो दिन में ही कॉलानी की तमाम स्त्रियों की मुंहबोली सास बन जाने पर इठलाती पत्नी बोली थी- “भाई हम न जैहें,अब गाँवकित्ती सारी बहुरियां यहीं मिल गई हमको,बैठे बिठाये। ’’ (कहानी उजास)
मानवीयता लोगों के दिलों में है। यही कारण है कि संसार में दुःखी व पीड़ित लोगों को मसीहा मिल जाते हैं। भिखारिन बुढ़िया का एक्सीडेन्ट होने पर ऑटो रिक्शा वाला अस्पताल ले आया और मार्केट में फोन कर दिया, जिससे व्यापारी एकत्रित हो गये, ताकि उसका इलाज हो सके। (कहानी -ऑपरेशन , संग्रह गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ)
‘‘चलन’’ कहानी में निमाड़ के बघेल आदिवासियों का चित्रण है। उनकी जीवन शैली के साथ्-साथ अधिकारी वर्ग तथा मध्यमवर्गीय आम व्यक्ति की जीवन शैली का चित्रण एकसाथ कर लेखक ने अद्भुत् संगम प्रस्तुत किया है।तीनों ही वर्ग अपनी-अपनी बेटी के विवाह के लिए अपनी रीति-परम्परानुसार प्रयासरत हैं। तीनों ही वर्गों में बेटी अपने प्रेमी के साथ चली जाती है। उस घटना का तीनों वर्गों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
न केवल कहानियों मे बल्कि अनेक आलेख और व्यग्ंय लेखों में राजनारायण बोहरे ने सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाले प्रसंगों को प्रमुख रूप से उठाया है । विभूतिनारायण राय के उपन्यास ‘शहर में कर्फ्यू ’ की समीक्षा करते हुए उन पात्रों एवं संस्थाओं की सराहना की है जो कि सामाजिक समरसता कार्य करने के अभियान में जुटी हुई है। ( कर्फ्यू का प्रामाणिक विवरण: शहर में कर्फ्यू ) जयनंदन का उपन्यास ऐसी नगरिया में केहि विधि रहना की समीक्षा में डॉ0 भल्ला के चरित्र की प्रशंसा करते हुए बोहरे ने लिखा है ‘ डॉ0 भल्ला जैसे चरित्र इस समाज में ही पाये जाते हैं जो कि बिना किसी जाति पांति का भेदभाव किए सबको बराबर सम्मान और प्यार देते हैं।’ ( दलित संघर्ष की दास्तान: एसी नगरिया में केहि विधि रहना ) आदि में ऐसे प्रसंगों को बहुत ध्यान से उठाया है। ( नब्बे दशक का कथा साहित्य)
अपने व्यंग्य ‘पड़ौसी सलामत रहें’, ’हाथ उठाने और उठवाने की कला’ तथा ‘ कचरे को नसीहत दो प्यारे’ में भी राजनारायण बोहरे की सामाजिक समरसता की मूल भावना प्रकट होती है।
मुखबिर उपन्यास में डाकू गिरोह में प्रायः सभी जातियों के लोग रहते थे। डाकुओं का सहयोग उनकी जाति के अलावा अन्य लोग भी करते थे।
लेखक ने बुन्देलखंड क्षेत्र का वर्णन किया है वहाँ की तहजीब, संस्कृति एवं वहाँ के लोगों के बारे में बताया है। वहाँ लोगों में भाईचारा एवं सौहार्द्र था। लोग एक दूसरे की भलाई चाहते थे और मिलजुलकर रहते थे। ‘‘ ……………..यहाँ के मेले-ठेले, तीज त्योहार बड़े अनूठे और आपसी प्रेम बढ़ाने वाले रहे हैं। खाने पीने की चीजें निराली होती थी यहाँ की।…‘‘ व्यक्ति की आस्था, उसके संस्कार, उसके तीज त्योहार, खान-पान, रहन-सहन एवं समस्त क्रियाकलाप उनके लेखन के विशय हैं। धर्म और संस्कृति उनकी कहानियों के प्राण हैं। धर्म इन्सान को इन्सान से जोड़ने का एक मार्ग मात्र है। जिसके मन में मानव मात्र के लिये प्रेम न हो, वह व्यक्ति कभी धार्मिक नहीं कहा जा सकता। एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति तो कभी किसी से नफरत नहीं कर सकता।
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संदर्भ ग्रंथ-सूची
1 गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह)- राजनारायण बोहरे
2 इज्जत-आबरू (कहानी संग्रह)- राजनारायण बोहरे
3 हादस (कहानी संग्रह)- राजनारायण बोहरे
4 मेरी प्रिय कथाएँ (कहानी संग्रह)- राजनारायण बोहरे
5 मुखबिर (उपन्यास)- राजनारायण बोहरे
6 आलोचना की अदालत (आलेख संग्रह)- राजनारायण बोहरे
7 भारत की संत परंपरा और सामाजिक समरसता – कृष्ण गोपाल
8 सामाजिक समरसताः गांधीय परिप्रेक्ष्य- डॉ0 शंभू जोशी
9 समकालीन हिन्दी कहानी में सांस्कृतिक मूल्य- डॉ पद्मा शर्मा
10 सौन्दर्यबोध एवं भारतीय चिन्तन परम्परा- डॉ पद्मा शर्मा
डॉ पद्मा शर्मा(प्राध्यापक,हिन्दी)
शासकीय श्रीमंत माधवराव सिंधिया
स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी (म. प्र.)